शायरी की दुनिया में जब भी भावनाओं, प्रेम, और जज्बातों की बात होती है, Rahat Indori Shayari का नाम सबसे ऊपर आता है। उनके शब्द न केवल दिल को छू जाते हैं, बल्कि जीवन के गहरे अनुभवों को भी उकेरते हैं।
अगर आप शायरी के दीवाने हैं, तो Rahat Indori Shayari को पढ़ना और महसूस करना आपके दिल के करीब होगा। उनकी हर पंक्ति एक कहानी सुनाती है और हमें सोचने पर मजबूर करती है।
Rahat Indori Shayari
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
आंख में पानी रखो होटों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तों
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
ये हवाएं उड़ न जाएं ले के कागज़ का बदन
दोस्तों मुझ पर पत्थर जरा भारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो …….

दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे …..
सफ़र की हद है कि वहां तक के कुछ निशान रहे
चले चलो कि जहां तक ये आसमान रहे
ये क्या कि, आगे बढ़े और आ गई मंज़िल
मज़ा तो जब है कि पैरों में कुछ थकान रहे…..
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है
मगर ये बात हमारे ही दरमियान रहे ……
वो एक सवाल है , फिर उसका सामना होगा
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे

वो जब भी हमसे मिलेगा हिसाब मांगेगा
कहां गुजारी है सांसें जवाब मांगेगा
वो जब भी हमसे मिलेगा हिसाब मांगेगा
दीया न छीन मेरे हाथ से कि दिल मेरा
मचल गया तो अभी आफ़ताब मांगेगा
जो हंस रहा है मेरे शेरों पे वही इक दिन
कुतुब फ़रोश से मेरी किताब मांगेगा…..
शरीफ़ लोग तो मस्जिद में छुप के बैठ गए
वो जानते थे कि राहत शराब मांगेगा…,…

Rahat Indori Shayari
इश्क बड़ा हरजाई है ……
पहली शर्त जुदाई है ये इश्क बड़ा हरजाई है
गुम है होश हवाओं के किसकी खुशबू आई है
ख़्वाब करीबी रिश्तेदार लेकिन नींद पराई है
चांद तराशे सारी उमर तब कुछ धूप कमाई है
कोई मसीहा क्या जाने ज़ख्म है या गहराई है
दिल पर किसने दस्तक दी तुम हो या तन्हाई है ….

आंखों आंखों कैद हुए थे मंज़र मंज़र बिखरे हैं
सर पर सात आकाश, ज़मी पर सात समंदर बिखरे हैं
आँखें छोटी पड़ जाती है इतने मंज़र बिखरे हैं
आंगन के मासूम शज़र ने एक कहानी लिखी है
इतने फल शाखें पे नहीं थे जितने पत्थर बिखरे हैं
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख्वाब छतों पर बिखरे हैं ….
सारी धरती , सारे मौसम एक ही जैसे लगते हैं
आंखों आंखों कैद हुए थे मंज़र मंज़र बिखरे हैं
Rahat Indori Shayari
ये मुलाकात की घड़ी तो नहीं
ज़िंदगी उमर से बड़ी तो नहीं
ये कहीं मौत की घड़ी तो नहीं
ये अलग बात है हम भटक जाएं
वैसे दुनियां बहुत बड़ी तो नहीं …
टूट सकता है ये ताल्लुक भी
इश्क है कोई हथकड़ी तो नहीं
एक खटका सा है बिछड़ने का
ये मुलाकात की घड़ी तो नहीं .,…
आँखें तो मौजूद है मंज़र ग़ायब है …..
नींदें क्या क्या ख़्वाब दिखाकर गायब है
आँखें तो मौजूद है मंज़र ग़ायब है …
बाकी जितनी चीज़ें थी मौजूद है सब
नक्शे में दो चार समंदर गायब है……
दरवाजों पर दस्तक दें तो कैसे दें
घर वाले मौजूद मगर घर ग़ायब है ……
Rahat Indori Shayari
हों न जाएं कहीं पागल हम तुम ……
हंसते रहते हैं मुसलसल हम तुम
हों न जाएं कहीं पागल हम तुम
जैसे दरिया किसी दरिया से मिले
आओ हो जाए मुकम्मल हम तुम
उड़ती फिरती है हवाओं में ज़मी
रेंगते फिरते हैं पैदल हम तुम …..

Rahat Indori Shayari
ये कहानी किसी किरदार की मोहताज नहीं ……..
तेरे वादे की तेरे प्यार की मोहताज़ नहीं
ये कहानी किसी किरदार की मोहताज नहीं
लोग होठों पे सजाए हुए फिरते हैं मुझे
मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज नहीं
रोज़ आबाद नए शहर किया करती है
शायरी अब किसी दरबार की मोहताज नहीं
आसमां ओढ़ के सोएं है खुले मैदान में
अपनी ये छत किसी दीवार की मोहताज नहीं ….
ज़िंदगी है तो ज़िंदगी भी लगे
ग़म से आकर गले खुशी भी लगे
ज़िंदगी है तो ज़िंदगी भी लगे
तू जो आए खुद भी खो जाऊं
तू न आए तो तेरी कमी भी लगे
उसकी आंखों को याद कर लेना
आपको प्यास जब कभी भी लगे
अश्क पलकों में हो तो अच्छा है
शामियाने में रोशनी भी लगे। …
Rahat Indori Shayari
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है ……..
अगर खिलाफ़ है होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है
मैं जानता हूं दुश्मन कम नहीं है लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है
हमारे मुंह में तुम्हारी जबान थोड़ी है ……
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है ….

तुझे देखे ज़माना हो चुका है
ये आईना फ़साना हो चुका है
तुझे देखे ज़माना हो चुका है
अब आसूं भी पुराने हो चुके हैं
समंदर भी पुराना हो चुका है
तेरी मसरूफ़ियत हम जानते हैं
मगर मौसम सुहाना हो चुका है
चलो अब हिज़्र का हम भी मज़ा लें
बहुत मिलना मिलाना हो चुका है
हज़ारों सूरतें रौशन है दिल में
ये दिल आईना खाना हो चुका है ………..
Rahat Indori Shayari
हम दिया रख के चले आए है देखे क्या हो
मैं धूल में आटा हूं, मगर तुझको क्या हुआ
आईना देख, जा जरा घर जा संवर के आ
सोने का रथ फ़कीर के घर तक ना आएगा
कुछ मांगना है हमसे तो पैदल उतर के आ
सारी फितरत तो नकाबों में छिपा रखी थी
सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रखी थी
हम दिया रख के चले आए है देखे क्या हो
उस दरीचे पे तो पहले से हवा रखी थी
मेरी गर्दन पे थी तलवार मेरे दुश्मन की
मेरे बाजू पे मेरी मां की दुआ रखी थी
शहर में रात मेरा ताजियती जलसा था
साब नमाज़ी थे मगर सबने लगा रखी थी
Rahat Indori Shayari
फूल जैसे मखमली तलवों में छाले कर दिए
फूल जैसे मखमली तलवों में छाले कर दिए
गोरे सूरज में हजारों जिस्म काले कर दिए
देखकर तुझको कोई मंजर न देखा उम्र भर
इक उजाले ने मेरी आंखों में जाले कर दिए
रौशनी के देवता को पूजता था कल तलक
आज घर की खिड़कियों के कांच काले कर दिये
ज़िंदगी का कोई भी तोहफा नहीं हैं मेरे पास
खून के आंसु तो गजलों के हवाले कर दिए
बुलाती है मगर जाने का नहीं,
ये दुनिया है, इधर आने का नहीं
दो गज सही, मगर ये मेरी मिल्कियत तो है,
ऐ मौत! तूने मुझको ज़मींदार कर दिया।
घर के दरवाजे पे ताला है,
याद रखना भी एक मसला है।
हाथ खाली हैं, तेरे शहर से जाते-जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते-जाते।
जिंदगी तो अपने ही तरीके से चलती है,
राहत, लोगों की सोच तो बस एक वहम है।
फूलों की दुकानों से चुराकर गरीबों के कफ़न,
चंद लोगों ने मजहब को बदनाम किया है।
सूरज, सितारे, चांद मेरे साथ में रहें,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें।
अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है,
ये सब धुआं है, कोई आसमान थोड़ी है।